।। हथेली में ।।
विदेश में
चाँद से चुरा लेती हूँ
अपनी धरती का चाँद
और सितारों से
स्वप्न-पथ के लिए रोशनी
सूर्यरश्मियाँ सीती हैं अँधेरा
चन्द्रकिरणें काढ़ती हैं कशीदा
अपनत्व की पुकार में
आँसू देते हैं मौन आवाज
पुनर्वापसी स्वदेश की
जीवन का पुनर्जन्म
साँसों की रुलाई में
हवाएँ बुनती हैं स्वप्न-स्वेटर
एकाकीपन के शीत को ढँकने के लिए
प्रतीक्षा में निरखती हूँ आकाश
और तलाशती हूँ बादल
कि वे रूमाल बनकर
कि वे रूमाल बनकर
सोख लें आँसू
और फिर बरसे
स्वदेश की गोद में
स्मृति बनकर
धड़कनें कह पातीं
अनुभूतियों का दुःख
धड़कनें बातें करतीं
मेरी और तुम्हारी तरह
धड़कनें समझतीं
धड़कनें समझतीं
बेचैन, बेचैनी की
धीमी आहटें
जो अध्वनित स्पर्श होती हैं
खुशनुमा धूप की तरह
जो गहरे कोहरे के बाद
छिटकती हैं
नम मुलायम घास पर
जाड़े की गुनगुनी धूप के
शब्द बनकर
शब्दकोश से परे
धड़कनें अपनी ध्वनि में
रच पाती 'अगर'
सही-सही शब्द
तो मुखर हो जाता 'मौन'
जो है तुम्हारे लिए मेरे भीतर
तुम्हारी हथेली ने लिखी
मेरी हथेली में
स्पर्श की पहली पाती
धड़कनों की
जिसे ओंठ पहचानते हैं
अपनी मुस्कराहट की तरह
और आँखें जानती हैं
आँसू की तरह ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें