।। परछाईं ।।
सूर्य की
परछाईं में ... सूर्य
प्रकाश के
बिम्ब में ... प्रकाश
सूर्य निज-ताप से
बढ़ाता है आत्म-तृषा
और नहाते हुए नदी में
पीता है नदी को
नदी
समेट लेती है
अपने प्राण-भीतर
सूर्य को
और जीती है
प्रकाश की ईश्वरीय-देह
नदी
बहती हुई
समा जाती है समुद्र में
जैसे
मैं
तुममें
तुम्हारी होने के लिए ।
(हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह 'भोजपत्र' से)
(हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह 'भोजपत्र' से)
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