।। स्पर्श-ताप ।।
सजल स्नेह
आत्मा का मुखर शब्द है
अंतःकरण की भाषा का सर्वांग
प्रणय का अनोखा भाष्य
जादुई अर्थ-कोष
प्रिय का हर शब्द
प्रणय की वंशावली है
कि
नश्वर देह में
नश्वर देह में
अनश्वर हो जाती है प्रणय-देह
अहर्निश प्राण संगिनी
अनाज का स्वाद
जैसे जानती है देह
वैसे ही चित्त का स्वाद और सुख
मन की स्पर्शानुभूति की भीज से
सीज उठती है आत्मा की देह
अवतार लेती है नवातुर प्रणय देह
देह-भीतर
मानव-देह से इतर
अंतरिक्षी पावन
स्पर्श-स्पंदन में होता है जहाँ
ईश्वरीय जादू
कि सम्पूर्ण देह
विशिष्ट सृष्टि लगने लगती है
प्रणय की आकाश-गंगा
उतर आती है चेतना की गंगोत्री में
मन-देह को गांगेय बनाने के लिए
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