।। लिखावट ।।
तुम्हारी लिखावट
याद आती है
तुम्हारे चेहरे की तरह
उसमें तुम
तुममें वह
दिखायी देती रही है अब तक
तुम्हारे नहीं आने पर
पत्र आते थे तुम्हारे
प्रतिनिधि होकर
पूरते थे मुझे
स्निग्ध अपनेपन से
आँखें पोंछती रही हैं
आँसू
शब्दों की हथेली से
तुम्हें नहीं मालूम
तुम्हारी लिखावट
उतरती रही है मुझमें
जैसे
आँखों में
उतरते हुए तुम्हारा प्रणय
अवतार लेता रहा है मुझमें
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