पुष्पिता का पहला उपन्यास 'छिन्नमूल'
विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित एक दर्जन से भी अधिक कविता-संग्रहों की रचयिता
पुष्पिता अवस्थी का
अभी हाल ही में पहला उपन्यास
'छिन्नमूल'
प्रकाशित होकर सामने आया है ।
अंतिका प्रकाशन द्धारा प्रकाशित
'छिन्नमूल' सिर्फ पुष्पिता अवस्थी का ही
पहला उपन्यास नहीं है
- बल्कि औपनिवेशिक दौर में बतौर गुलाम सूरीनाम गए
भारतवंशी किसान-मजदूरों की संघर्षगाथा के साथ-साथ
वहाँ की वर्तमान
जीवन-दशा, रहन-सहन, रीति-रिवाज और
सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को
उद्घाटित करने वाला
अपने ढंग का भी पहला उपन्यास है ।
अरसे तक
सूरीनाम में रह चुकीं पुष्पिता अवस्थी ने
जितने सारे डिटेल्स के साथ
सूरीनाम के संपूर्ण जन-जीवन को
दैनंदिन व्यवहारों और कार्य-कलापों के विवरण
के साथ
इस उपन्यास में समेटा है, वह इसको महाकाव्यात्मक विस्तार और ऊँचाई
देता है ।
248 पृष्ठों में समायी 'छिन्नमूल' की मूल कथा में
राजनीति,
समाज, संस्कृति, इतिहास, धर्म और दर्शन
अंतरगुंफित हैं । एक तरह से कहा जाए
तो इस उपन्यास का
नायक एक व्यक्ति न होकर पूरा सूरीनाम देश है ।
यूँ
ललिता, रोहित, रिचर्ड, रोहित की माँ, गंगा, सुष्मिता आदि के अलावा
कई ऐसे
छोटे-छोटे चरित्र इसमें हैं जिनकी क्षणिक उपस्थिति भी
अविस्मरणीय हो जाती
है । ललिता के मार्फत तो
इसके संपूर्ण आख्यान सामने आते ही हैं,
सूरीनाम के
बनने-बिगड़ने के दास्तान भी आगे बढ़ते हैं ।
धर्म की दुकानें वहाँ भी हैं और
भारत की धर्मार्थ संस्थाओं के हस्तक्षेप भी
- भले उसके रूप/स्वरूप अलग हों
।
उदारीकरण के तमाम दुष्प्रभावों के साथ-साथ
औपनिवेशिक मानसिकता के
अवशेष भी वहाँ दीखते हैं ।
इन तमाम बातों को इतने चाक्षुष और विश्वसनीय
तरीक़े से
'छिन्नमूल' की कथा में पिरोया गया है कि
पाठक लगातार अपने आप को
कथा भूमि के साथ महसूस करता है ।
'छिन्नमूल' का कृतिकार के आत्मिक
अनुभव और अनुभूति से
इतना गहरा जुड़ाव प्रतीत होता है,
जैसे उपन्यास की
संपूर्ण कथा उनके देखे-भोगे सच का विवरण हो ।
पुष्पिता अवस्थी ने 'छिन्नमूल' को प्रसिद्ध कथाकार और 'पहल' संपादक
ज्ञानरंजन को सादर समर्पित किया है ।
इसके आवरण पर सूरीनाम नदी के निकट
पारामारिबो स्थित होटल तोरारिका की दीवार पर लगी
म्यूरल पेंटिंग की छायाकृति को देखा जा सकता है ।
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