तीन कविताएँ
।। भिगोने के लिए ।।
स्मृतियों में
आवाज़ नहीं होती है
सिर्फ़ गूँज होती है
मन-समुद्र के आवेग की
संबंधों में
रोशनी नहीं होती है
सिर्फ़ उत्ताप होता है
प्रणयाग्नि के प्रज्वलन का
प्रेम में
बरखा नहीं होती है
सिर्फ़ बरसात होती है
सर्वस्व भिगोने के लिए
।। विमुक्त होने के लिए ।।
घुल गई है
तुम्हारी ध्वनि
शब्दों को
आत्मसात कर लिया है
चेतना ने आत्मीय होकर
साँसों ... में
साँस लेती हैं तुम्हारी ही आत्मा की ध्वनियाँ
तरंगित अनन्य अनुराग
छेड़ता है मिलकर विलक्षण तान
लय में जिसके
विलय हो जाती है देह
।। प्राणवान ।।
शब्द
छूते हैं देह
और देह जीती है शब्द
प्रेम में
प्राणवान होती है
ऐसे ही देह
और ऐसे ही शब्द
('भोजपत्र' शीर्षक कविता संग्रह से)
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