।। सार्थक होने के लिए ।।

तुम्हारे शब्द
छूते हैं       पूरा दिवस

आकार लेने लगता है     समय
सार्थक होने के लिए

कुँवारी आत्मा
प्रणय के वसंत में
लेती है    जन्म

पुनर्जन्म
प्रस्फुटित होता है
भीतर से बाहर तक

प्रणय लहरें
छू कर चली जाती हैं
और महसूस होती है      पूरी नदी

वर्षों तलक
बिल्कुल वैसे ही      जैसे
आँखें
नदी देखकर
डुबकियाँ लगा लेती हैं      नदी में

और जी लेती हैं
प्रणय का कुँवारा आनंद-सुख

('भोजपत्र' शीर्षक कविता संग्रह से)

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