।। अंतरंग साँस ।।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
तुम्हारा प्यार
मेरे प्यार का आदर्श है
अपने भीतर बसी
तुम्हारी छवि के ओठों से लगकर
अकेलेपन की वाइन के ग्लास को सटाकर
कहते हैं    चीयर्स
जिसमें चीख पड़ती है   आंतरिक साँस
जिससे बचाए रखी है
अपने जीवन की अंतिम साँस

जिसमें जी सकूँ
तुम्हारा अमर प्यार

बादलों से बादलों के
क्षितिज की तरह बन गए हम दोनों

प्यार में
समुद्र से बने हुए
सागर के क्षितिज हैं हम दोनों

प्यार में
समुद्र को पीता है आकाश
आकाश को पीता है समुद्र
नदी को जीता है समुद्र

वैसे ही
जैसे तुम मुझे
अपने कोमलतम क्षणों में
और स्मृतियों में ।

('रस गगन गुफा में अझर झरै' शीर्षक कविता संग्रह से)

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